देखा है
देखा है
गंगा में ठहराव देखा है
मैंने तिरगी में भी छांव देखा है।
लोग रहते हैं साथ जहां पर
ख़्वाबों में वही गांव देखा है।
जहां होती जीत नफरत की है
मैंने होते ऐसे चुनाव देखा है।
अब टूटे न इंसाफ के धागे
इन पर बहुत तनाव देखा है।
यूं व्यवहार बयां करूं लोगों का
बस लोगों में बदलाव देखा है।
उतार रहा इश्क़ ग़ज़लों में पर
हर नज़रों में विपरीत भाव देखा है।
जहां कृष्ण की लीला को जाना
वहीं कंस का भी स्वभाव देखा है।