चार लफ्ज़ उधार
चार लफ्ज़ उधार
दस्तानों में दास्तान छुपी है
ना जाने,
ये दस्तानों की या
दास्तानोंकी खूबी है।
कहीं दूर से एक चमक
आती दिख रही है।
हम सितारों के पास जा रहे हैं
या सितारे हमारे पास ?
जाने दो,
हममें या उनमें नहीं
मुश्किल तो दूरियों में रखी है।
सुने रास्तों पे चलती जेब भी खाली है
कुछ यादें थी उनमें,
कुछ उम्मीदें भी
अब तो बस हाथों की थाली है।
बहुतों का कर्ज था मुझ पर,
खुद को बेच वो लौटा कर आ रहा हूँ।
आज भी, अब भी,
ये चार लफ्ज़ उधार ले गा रहा
हूँ।
कुछ बातें सीखी है मैंने
बहुत कुछ अभी बाकी है।
दरबदर घूमता,
हर सफर चूमता हूँ।
पर हर कदम में,
वहीं रास्तों को
मिलने की बेताबी है।
कमीज बस एक कपड़ा है और
पतलून बस घुटनों तक।
शक्ल देखने की जरूरत नहीं,
खुदको आईना समझ लेता हूँ,
सूरज डूब जाने तक।
ज़मीन मेरा बिस्तर,
आसमान मेरी छत।
एक आसूँ मेरा गम,
एक मुस्कान मेरी ताकत।
कंगाल हो कर भी,
इतना अमीर बनकर रह रहा हूँ।
पर आज भी, अब भी,
ये चार लफ्ज़ उधार ले गा रहा हूँ।