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Suma Malik

Abstract

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Suma Malik

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बिखरती आस

बिखरती आस

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लिया जन्म दुनिया में, मैंने सुख की सांस ली थी

जन्म के साथ ही मैंने, माँ-बाप की नीन्द ले ली थी


चाह थी बेटे की, बेटी ने जन्म लिया

ये देख कर उन्होंने अपना माथा पकड़ लिया


झूम कर खिलती रही, वो मासूम कली

खेलती रही वो, हर आंगन हर गली


बड़े होकर हुआ, जब उसे अहसास

क्या लेने आई, तू इन सब के पास


तभी से एक जज्बा, मेरे दिल मे भर गया

मैं बेटी से हटकर, बेटे में बदल गया


कि हर संभव कोशिश, ना बदल सकी खुद को

जालिम जमाने ने कुरेदा, एक बेटी के दुख को


कदम-कदम पर मुझको,

लड़की होने का आभास कराया

साथ ही साथ मेरे सपनों से,

एक शीशा टकराया


बुलन्द होसले दिये गुरूजनों ने मेरे

पर हो चुके थे बिल्कुल कन्धे ढीले मेरे


देखते हैं जीवन में अब क्या होगा

तिरस्कार मेरा या समाज का मुँह बन्द होगा


अन्त में हौसले मेरे टूटेंगे या दुनिया का मुँह बन्द होगा

देखना है जीवन में आगे क्या होगा।


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