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None Saleemullah

Abstract

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None Saleemullah

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भूल जाऊँगा

भूल जाऊँगा

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हमने देखी थी

एक नदी बहती हुई

रात की छाती चीरती हुई

बहती हुई

हमने देखा था कि

हम अकेले थे, तनहा थे

एक नाव पे सवार

और नाव थी कि

बहती हुई।


कोशिश ना की

कि रुक जातें,

यहाँ पे रुकने का क्या बोध ?

वह कोई और समय था जब

हमारा संगम था।


वह तो एक ख़्वाब था

इसकी ताबीर की ताक़त नहीं।

इसकी ताबीर से वह मोहब्बत नहीं।

हम तो एक नदी थे,

संगम के इंतज़ार में थे,

समंदर में खो जाएँगे...।


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