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प्रीति प्रभा

Abstract

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प्रीति प्रभा

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बेवजह तो कुछ नहीं

बेवजह तो कुछ नहीं

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भँवर ना होता अगर पास किनारा होता

वो अगर पाक होता तो आज हमारा होता


धुआँ उठता है दिल में आसमां ख़ामोश है

उसे खबर नहीं यहाँ कैसे गुजारा होता


उसकी हर चाल थी शतरंज की चाल

दिल से ना खेलता तो साथ सहारा होता


बेवजह तो कुछ नहीं होता है दुनिया में

कोई दुश्वारी ना होती जो इशारा होता


उसके जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकने वाली

ज़ख्म भर जाए तो भी नहीं प्यार दोबारा होता


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