STORYMIRROR

Shbhm K

Abstract

4  

Shbhm K

Abstract

अनाथ

अनाथ

1 min
373

काश मैं भी अनाथ होता

मैं भी कुछ अपने मन की करता

ना होता मुझ पर ये बेवजह जिम्मेदारियों का बोझ


ना होता ये किसी के जाने का डर,

काश मैं भी अपने मन की कर पाता, 

बिना बताए कहीं भी निकल जाता,


ना जाने मैं भी शायद कुछ बड़ा कर पाता

अगर मैं इन बेवज की जिम्मेदारियों में उलझ न जाता।

हर कदम पर किसी के खोने का डर न होता


ज़िन्दगी को निर्भय होकर जीता अगर मैं अनाथ होता

खुश होता, खुद का होता !


Rate this content
Log in

More hindi poem from Shbhm K

Similar hindi poem from Abstract