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अकेलापन

अकेलापन

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हर शख़्स अकेला है यहाँ

हर शख़्स में एक राज़ है


दरवाजे खुले तो देखूँ

किसमें कितना इंसान है


लिपटे पड़े हैं अपने मज़बूर-ए-हालात से

ख़ैर खबर नहीं, बस निकले हैं अँधेरों की तलाश में


पाकर भी सब रख दिया है एक कोने में

ये तन्हाई कैसी है इन रफ़्तारी इंसानो में


मशरूफ़ीयत से बांध लिया है खुद को इन्होंने

सुकून के पल बस दो चार बाकी है


कहने को सब एक दूसरे के साथी है

देखो मगर हर शख़्स कितना एकाकी है


ख़ुशनुमा लम्हों में है शरीक

बुरे दौर में फकत तन्हाई साथ पायी है


हस्ते हुए चेहरे दिखते हैं बहुत

जो जितना हँसे उसके आंसु उतने भारी है


वाबस्ता भी तो नहीं किसी एक से

हर रोज किसी अजनबी से दोस्ती निभानी है


आज़ादी से अकेलेपन तक का सफ़र है ये

किसी एक का होने मे बंदिश नहीं, सुकून-ऐ-दीवानगी है


ख़त्म कर दे कोई ख़ुद को अगर

उसकी मौत में हम सब भागी है


ये अकेलापन कोई एहसास नहीं

सज़ा है जो इंसान को ख़ाक कर डालती है


कहते है जो अकेलापन इतना भी बुरा नहीं

लगता है उन्होंने कुछ खोया ही नहीं है 


खुदग़र्ज़ी को ख़ुद से इश्क़ कहना

कायरता है अकेलापन नहीं है।


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