आंखें खोल बोल सीधी बात
आंखें खोल बोल सीधी बात
सीधा चश्मा पहन के,
बीना शोर शराबे के,
ऐक एक की पोल खोलता हूं,
मैं टेढ़ी नहीं सीधी बात करता हूं,
सोच के समाज के हर बात में बोलता हूं,
अफाओ के दौर में मैं,
सीधी बात करता हूँ,
हाथों में कलम हैं, हथियार नहीं,
लिखने की ताकत है,
जो घाव भी देता है,
मलहम भी लगता है,
सच बोलने की साझा भी पाता है,
लेकिन मैं सीधी बात ही करता हूं।