आज रूठी है एक दिन मना लूंगा उस
आज रूठी है एक दिन मना लूंगा उस
उसने दूर रहकर मुझे रुलाया हरदम
अपने पास बुलाकर रुला दूंगा उसे,
बो तड़प उठेगी मुझे खमोस पाकर
एक दिन मैं भी उसे मना लूंगा
उसे ना गँवारा था मेरे साथ चलना भी
अपने जनाजे में शामिल करा लूंगा उसे,
बो पुकारेगी चीख-चीख कर की लौट आओ
गहरी नींद में शो कर ये शिला दूंगा उसे,
बो इसकदर लिपट जायेगी मुझसे
एक दिन मैं भी मना लूंगा उसे
आंंसू कैसे बहते हैं दर्द कैसा होता है
खमोस रहकर जता दूंगा उसे,
बो दौड़ी आयेगी मेरे जनाजे में
एक दिन मैं भी मना लूंगा उसे।
की क्या होती है तन्हाई और गम क्या होता है
होकर जुदा ये बतादूँगा उसे,
की सुख जायँगे आंशू उसके रोते-रोते
एक दिन मैं भी मना लूंगा उसे।
उसे शिकवा है कि मैने उसका दिल दुखाया था
अपनी भी सारी शिकायते बता दूंगा उसे,
बो कहेगी लौट आओ भूलजाओ सारे शिकवे
एक दिन मैं भी मना लूंगा उसे।
इश्क़ है उसे सारे जमाने से मुझे आवारा समझती है
अपनी आवारगी का ऐसा सिला दूंगा उसे,
हो जाऊंगा खुदा का उसी के सामने
एक दिन मैं भी मना लूंगा उसे।
उसने दूर रहकर मुझे रुलाया हरदम
अपने पास बुलाकर रुला दूंगा उसे,
वो तड़प उठेगी मुझे खामोश पाकर
एक दिन मैं भी उसे मना लूंगा।
