बेमौसम बरसात
बेमौसम बरसात
कल ही शाम को बहुत बारिश हुई थी, बिन मौसम कि बरसात थी पर लोगों के लिए इस जेठ की महीने में किसी वरदान से काम न लग रही थी। पर आज गांवों की सड़क या खेतों को देख कर कोई न कह सकता है कि यहाँ २ बूँद भी वर्षा हुई होगी । कोई १:३० बजे होंगे जब रोज़ की तरह रामदास दोपहर का भोजन करने घर आया । वो हाथ-मुँह धो ही रहा था, माधवी ने भोजन परोस दिया ।
रामदास में एक बार ईश्वर को प्रणाम किया, एक निवाला तोड़ अपने पूर्वजों को अर्पित किया और खाना शुरू किया । माधवी पास ही बैठ पंखा करने लगी । रामदास ने दो निवाले लिए, खाना बहुत अच्छा बना था, उसने पहले खाने की तारीफ की और कहा - "तुम भी खाना ले कर खा लो, पंखा करने की जरुरत नहीं ।" माधवी ने ये कह कर इंकार कर दिया कि - "आप खा लो जी, मुझे कौन सा खेत पर जाना है, खा लुंगी जब भूख लगेगी।" रामदास में खुद ही एक निवाला तोड़ा और माधवी को खिलने लगा, वो मना नहीं कर पाई, इस क्षण उसे कोई स्वर्ग नहीं दे देता तो वो भी छोड़ देती, उसे इस पल इस कुटिया में बैठे बैठे मानो स्वर्ग मिल गया था। इसके बाद माधवी ने खुद खाना कि कोशिश कि पर रामदास ने उसका हाथ पकड़ लिया और खुद ही खिलता रहा, दोनों को परम सुख कि अनुभूति हो रही थी। खाना समाप्त करने के बाद रामदास हाथ धोने के लिए उठा और माधवी थाली को एक किनारे रख पुनः उसके पास आई ।
रामदास ने उसके पल्लू से ही अपना हाथ पोछा, अपनी पत्नी को एक नज़र देखा और खेत के लिए चल दिया । रामदास आँगन तक ही गया था कि रुक गया, ऊपर कि और देखा और फिर पास पड़ा खटिया वहीँ गिरा कर बैठ गया । माधवी को पीछे से पूरी बात समझ न आई, रामदास को ऊपर कि और देखते हुए देख कर लगा कि शायद धुप बहुत ज्यादा है, और सुबह से काम कर थक भी गए होंगे इसीलिए बैठ गए, कुछ देर बाद चले जायेंगे, इस गर्मी में ऐसे भी काम करना बहुत मुश्किल होता है । उसने सोचा धुप थोड़ी गिर जाये फिर चले जायेंगे, और अपने काम में लग गई ।
करीब ४ बजे होंगे, पर आसमान में आज फिर बदल घिरने लगे थे, तो धुप कुछ काम हो गयी, जब राजकिशोर घर आया । राजकिशोर, रामदास और माधवी को ईश्वर का वरदान था, वो बहुत नटखट परन्तु प्रतिभाशाली बालक था, इसी वर्ष रामदास ने उसका दाखिला गावं के ही सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में करवा दिया था । 'माँ परसों से फिर से स्कूल कि छुट्टी हो जाएगी' रामदास ने आते ही एलान किया । माधवी कोई सवाल करती उससे पहले ही उसने दूसरी सूचना दी, ये प्रश्नवाचक रूप में, 'बाबा, अभी ही सो गए ? आज काम पर नहीं गए क्या? ' ' क्या अभी तक सोये हैं? आँख लग गई होगी, जा उठा दे, उन्हें खेत को जाना है।' माधवी का जवाब व आदेश दोनों साथ आया ।
राजकिशोर, बाबा को उठाने गया, और थोड़ी देर बाद वापस आ कर, माँ के सामने खुद को विफल घोसित कर दिया. "नहीं उठ रहे, तुम ही जाकर उठा दो " राजकिशोर ने कहा । "नहीं उठ रहे मतलब क्या है, तूने उठाया ही नहीं होगा, बहुत सैतान हो गया है, हर वक़्त बस परेशान करते रहता है माँ को ।" माधवी थोड़ी झल्लायी और खुद ही उठ आँगन को जाने लगी ।
"ऐ जी, खेत पर न जाना क्या आज! देखो फिर बादल आ रहे हैं, लग रहा है बारिश होगी आज भी । मेड़ की मरम्मत अभी तक बची ही है न? बारिश के पहले- पहले उसे पूरा कर लौट आओ । नहीं फिर बारिश में काम करना पड़ेगा ।" माधवी रामदास को उठाते हुए बोली| पर रामदास हिला तक नहीं, जैसे गहरी नींद में सोया हो । माधवी ने फिर बुलाया, पर अब भी वो न उठा। उसको थोड़ा हिला के उठाने के लिए माधवी ने उसकी बांह पर हाथ रखा, तो उसका कलेजा धक् से रह गया । वो वहीँ सन्न सी बैठ गई, रामदास का शरीर ठंडा पड़ चूका था । राजकिशोर वहीँ खड़ा रहा ।