Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Classics

4.2  

Nand Lal Mani Tripathi pitamber

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सर्द की रात

सर्द की रात

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उत्तर भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश एव बिहार जो मेरी जन्म मातृ पितृ भूमि है वहां की सामाजिक संस्कारो और व्यवहारिक आचार व्यवहार से भली भांति परिचित हूँ। पहले इन क्षेत्रों में बारात जब कन्या के यहां बिबाह के लिये पहुंचती है तो प्रथम रात्रि बैवाहिक सांस्कार सम्पन्न होते है दूसरे दिन घराती बाराती दोनों पक्षो के रिश्ते नातो गांव जवार एक दूसरे से परिचित होते है जिसे जनवासा कहते थे और तीसरे दिन बिदाई की रश्म सम्पन्न की जाती थी।सुजान गंज पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से सटा हुआ गांव है जिसमें ठाकुरों की बाहुल्यता है ब्राह्मणों के भी कुछ परिवार एव अन्य बहुत सी जातियां रहती है अमूमन ठाकुर परिवार के पास गांव के रकबे की अधिकांश भूमि है और उसमें भी ठाकुर चंद्रभान सिंह गांव के पूरे रकबे की चौथाई के मालिक है अमूमन पूर्वी उत्तर प्रदेश एव बिहार के ग्रामीण अंचल में शादी व्याह रबी की कटाई के बाद अप्रैल मई में होती थी सम्पन्न परिवारो में ही शरद ऋतु में वैवाहिक कार्यक्रम होते थे। अब तो क्या शर्दी क्या गर्मी क्या अमीरी क्या गरीबी सभी परिवारो में जिस मौसम में मुहुर्त मिल जाये शुभ वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न होते रहते है।

गांव बड़ी चहल पहल थी कड़ाके की ठंठ हाड़ कंपा देने वाली सर्दि फिर भी गांव में खुशियों का वातावरण था ठाकुर चंद्रभान सिंह की जेष्ठ सुपुत्री मनोरमा की शादी पास के ही रियासत हथुआ के जमींदार के घर होनी थी शादी की तिथि से एक माह पहले से ही इलाके के सारे मिठाई बनाने वाले, खाना बनाने वाले, कपड़े की सिलाई करने वाले दर्जी, मोची, पनहेड़ी, सिंघा बजाने वाले, कुम्हार, बारी, लोहार, नाऊ, सभी ठाकुर चंद्रभान सिंह की पुत्री के विवाह की तैयारी में मशगूल थे। आखिर पच्चीस नवम्बर 1974 की वह शाम आ ही गयी जब हथुआ के जमींदार ठाकुर महात्तम सिंह जी अपने डॉक्टर बेटे मार्तण्ड की बारात लेकर सुजानगंज पहुंचे बारात में हाथी घोड़े ऊंट मसालेदार सहनाई सभी उत्सव उत्साह थाट बाट के साजो सामान लाओ लश्कर साथ थे।। द्वारपूजा का रश्म शुरू हुआ दोनाली बन्दूखो रायफल की गोलियों एव मसालेदार के पटाखों की आवाजों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा द्वारपूजा के दौरान हाथी, घोड़ो की दौड़ करतब भी दिखये गए द्वार पूजा कार्यक्रम संपन्न होने के उपरांत अल्पहार के बाद सभी बराती अपने अपने झोलदानी छोटे छोटे तंबू जो आजके कॉटेज हट की तरह होता है में विश्राम करने चले गए जब रात्रि के लगभग आठ बजे तो बाई जी के नाच का कार्यक्रम आयोजित था जो बारात का खास आकर्षण थी चूंकि बारात तीन दिन रुकनी थी तो मनोरंजन हेतु बाई जी का नाच बरात के साथ बारातियों के मनोरंजन के लिये आया था जब स्टेज पर बाई जी लोंगो का नृत्य कार्यक्रम शुरू हुआ तब कड़ाके की ठंठ होने के बाबजूद गांव एव घराती एव बराती बाई जी का नाच देखने मे मशगुल हो गए केवल जिसका विवाह होना था एव रस्म अदायगी के पात्र वैवाहिक रस्म निभाने में व्यस्त थे। बाई जी के पास हर तरफ मन पसंद गाने की फरमाइश आती बाई जी गाती और और बख्सिस पाने पर शुक्रिया देना नही भूलती धीरे धीरे रात्रि ढलती गयी और चार बजे भोर में बहुत मुश्किल से बाई जी को बारातियों घरातियों एव गांव वालों ने फुर्सत दी।

उधर ठाकुर चंद्रभान सिंह के बेटे ठाकुर मार्तण्ड सिंह अपनी दुल्हन मनोरमा से वैवाहिक रस्म पूरी कर बारात में लौट चुके थे। सुबह हुई बारातियों का जलपान हुआ और फिर दोपहर का भोजन एव सायं कालीन घराती बराती पक्ष की औपचारिक बैठक जनवासा सद्भावना सम्मेलन के बाद पुनः शाम हुई एव रात ढलने लगी एव बाई जी का नृत्य कार्यक्रम शुरू हुआ कड़ाके की सर्द फिर भी पूरा गांव एव बराती बाई जी का नृत्य देख रहा था फरमाइस करते बख्सिस देते अब बाई जी के समूह में एक बेहद खूबसूरत नाजुक नाज़ों अंदाज़ की यौवन से मद मस्त बाई थी मिन्हाज जब भी वह नृत्य के लिये आती सिटी अश्लील व्यंग एव फरमाइस बख्सिस की झड़ी लग जाती दूसरे दिन जब मिन्हाज नृत्य के लिये आई तब उसने बड़ी विनम्रता से कहा साहबान हुज़ूर कद्रदान हम पिछले दो दिनों से आप ही लोंगो की फरमाइस पर नाच रहे है आज मैं एक आप बीती गीत सुनाना चाहती हूँ आप लोंगो से इल्तज़ा है कि आप एक बार अवश्य सुने चारो तरफ से आवाज़ आई सुनाओ सुनाओ।। मिन्हाज ने अपना गीत गाना शुरू किया जिसके बोल थे( हमहू हई बाबूजी के दुलारी जाने काईसे बन गईली नाचे वाली, लरिकाई में सुतलरहनी दुआरा साझ के जिद रोअत घर लिहनी उठाई कपरा, घर भर मानवे माने नाही जियरा, बाबूजी गोदी में घुमावे लागेन दुआरा, कब सोई गईली बाबूजी सुताई दिहले दुआरा ओढाई के चदरा, ढले लागल रात बाबूजी गइलन खाये आई गइल 

चीता दबाई के जबड़ा भागे लागल चारो ओर अंधियार, हमरे रोये के आवाज़ गांव भर खेजे लेके हाथे हाथे टॉर्च, नाही हम मिलनी गांव बाबूजी मानी लिहले बनी गईली चिता के जेवना, भगवान मंजूर कुछ और इहे तबलजी पगला जाने कैसे चिता भागल बच गइल जियरा, इहे तबलची पाल पोषके नाच गाना सिखाया आज

की रात है जिनगी के लागे परछाई है) मिन्हाज की आप बीती सुनकर गांव वाले घराती बारातीयो की आंखे भर आयी उसी जगह बैठे सुजान गंज के ठाकुर चंद्रभान सिंह अपनी जगह से खड़े हुये और बोले गांव वाले आज से बीस वर्ष पूर्व मेरी बड़ी बेटी जब डेढ़ वर्ष की थी तब उसे चिता उठा ले गया था उन्हने तबलची मिर्ज़ा से पूछा कबे तबलची यह बाई जी तुम्हे कब और कहा मिली थी तबलची मिर्जा बड़े अदब से उठा और बोला मालिक आज से बीस वर्ष पहले मैं इधर उधर घुमा मांगा खाया करते थे क्योंकि मेरी मानसिक स्थिति ठीक ना होने के कारण मेरे घर वाले मुझे बोझ समझ कर घर से बाहर कर दिया एक दिन घूमते घूमते शाम को यहां से दस कोस दूर नारायणी नदी की रेता में भूख प्यास से अधमरा पड़ा रहा कि लगभग चार बजे भोर में एक चिता एक नन्ही बच्ची को अपबे जबड़े में दबाए बुरी तरह से घायल भागत भागत हमरे नजदीक आ गया मुझे जरा भी डर नही लगा क्योकि मेरी मानसिक स्थिति ठीक नही थी जो भी मेरे तन पर आधे अधूरे कपड़े थे उनमें से आधा फाड़ कर उस चीते के घायल पैर में बांधा चिता ने नन्ही बच्ची को छोड़ कर मेरे पास बैठ गया मुझे लगा वह नन्ही बच्ची मर चुकी है मगर जब मैं उसके पास गया तब उसमें हल्की आवाज़ आयी मैंने उसे उठाया पानी से उसके घाव धोए घायल चिता मुझे व बच्ची को बड़े ध्यान से देखरहा था सुबह सूरज निकल चुका था

मगर उस सुन सान निर्जन रेत में एक तरफ चीता और दूसरी तरफ चेतना की पेट की भूख भय बिल्कुल नही बच्ची मेरे गोद मे बेसुध ऊपर से मंडराते गिद्ध अब था तो सिर्फ मौत का इंतज़ार तभी अचानक एक नाव किनारे आकर रुकी उसमें बैठा आदमी हाथ मे अकारी लिये आया बोला तुम कौन मैंने अपनी जानकारी के अनुसार उसको कुछ बताने की कोशिश की उसने जो भी समझा मुझे पता नही मगर उसने चीते को खाने के लिये मछली दिया और मुझे और चीते को नाव पर साथ लेकर अपने घर ले गया मेरे गोद से लिपटी अचेत पड़ी बच्ची के बारे मे बार बार पूछता मैँ कुछ भी बता सकने में असमर्थ था उस आदमी ने अपना नाम सज्जन मल्लाह बताया एक दो घंटे के नारायणी नदी का सफर तय करके हम लोग चीते के साथ सज्जन के घर पहुँचे जहाँ उसकी बूढ़ी माँ थी।

बूढ़ी माँ ने पहुंचते बच्ची को मेरे हाथ से लेकर उसका इलाज शुरू किया और सज्जन ने चीते का इलाज लगभग पंद्रह दिन में चीता स्वस्थ हो गया और नन्ही बच्ची भी स्वस्थ होने लगी लगभग तीन माह में बच्ची स्वस्थ हो गयी चीता स्वस्थ होते ही चला गया कभी कभार आता और चला जाता पता नही क्यों मेरी मानसिक स्थिति में सुधार होने लगा लेकिन एकाएक एक दिन सज्जन की नाव गहराई में पलट गई और वह भंवर में फंस कर डूब कर मर गया अब मैं बच्ची बूढ़ी माँ ही रह गयी सारे सहारे समाप्त हो चुके थे।बूढ़ी माँ सुकमा ने कहा मेरी सहेली बिधुनि शहर में रहती है बर्तन माज़ कर गुज़ारा करती हैं तब तक बच्ची तीन चार वर्ष की हो चुकी थी हम सुकमा और मिन्हाज शहर विधुनि को खोजते हुए एक साल में किसी तरह उसके पास पहुंचे मांग कर खाते जहाँ जगह मिलता सो जाते जब विधुनि से मुलाकात हुई उसके दो चार दिन बाद वह मुझे बच्ची को लेकर जहाँ बर्तन माज़ती थी ले गयी जहाँ मालिक मानस उनके बेटे बेटियाँ एव उनकी पत्नी शहर की मशहूर नृत्यांगना क्षमा रहती थी। मालिक मानस ने मुझे नौकर रख लिया एव क्षमा ने मिन्हाज को नृत्य सिखलाना शुरू कर दिया बहुत जल्द ही मिन्हाज के पैर थिरकने लगे और लगभग दस वर्ष में मिन्हाज बहुत बढ़िया नृत्यांगना बन गयी इस बीच बूढ़ी माँ और बिधुनि दोनों का स्वर्गवास हो गया मैं और मिन्हाज ही बच गए। मुझे मिन्हाज की हुनर देखकर मन मे लालच आ गया और एक दिन मैं मिन्हाज को लेकर चुपके से भाग आया मिन्हाज नाचती देखने वालों की भीड़ एकत्र होती।

अब मैं पूरी तरह मानसिक स्वस्थ एव जवान हो चुका था एक दिन अपने गांव पहुँचा तो घर वाले देख कर बहुत खुश हुए और उन्होंने ही मंडली बनाकर विवाह आदि के अवसर पर नाचने गाने का कार्य करने के लिये प्रेरित किया एव सहयोग किया इसी तरह यहाँ तक पहुंचे है ठाकुर चंद्रभान सिंह की आंखों से अश्रु की धारा बह रह रही थी साथ ही साथ पूरे गांव वालों की आंखों में अश्रु धारा बह रही थी ठाकुर चंद्रभान सिंह जी ने अपनी पत्नी सुजाता को जनवासे में बुलाया सुजाता ने मिन्हाज को देखते ही पहचान लिया रोते हुए बोली माँ की कोख अपनी औलाद को किसी सूरत में नही भूल सकती है हॉ ठाकुर साहब मिन्हाज मेरी बेटी वही है जिसे चिता उठा ले गया था कड़ाके की सर्द की तीन बजे भोर में भी सम्पूर्ण जनवासे में ममत्व वात्सल्य के प्यार की वापसी के जज्बात की गर्मी से गर्म हो गया मिन्हाज को ठाकुर चंद्र भान सिंह सुजाता के गले लिपट गयी वातावरण में अजीब खामोशी थी नवविवाहित दूल्हे ने बड़े गर्व से मिन्हाज को अपनी पत्नी की बड़ी बहन के रूप में स्वीकार किया ख़ुशी से झूमने लगा बारात की तीसरे दिन पूरे गांव वालों ने बड़े गर्व से बिदाई दी मिन्हाज राष्ट्रीय स्तर की ख्याति प्राप्त नृत्यांगना बनी तबलजी मिर्ज़ा ठाकुर चंद्रभान सिंह जी का सेवक बन गया ठाकुर साहब ने भी मिर्ज़ा को अपने बेटे की तरह स्वीकार किया।।


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