पिया के सितारे...

पिया के सितारे...

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एक गाँव था, जहाँ सितारे अंबर पर नाचा करते थे। छोटी सी पिया अक्सर उन्हें मिलने अपने दादी के साथ जाया करती थी। पिया की हँसी थी या तारों की चमक, पूरा आसमान जैसे धरती को चूम उठता।

एक दिन हमेशा की तरह, अपनी पढ़ाई खत्म कर पिया उन सितारों से मिलने चली। आज रास्ते कुछ नम थे। अँधेरे जैसे रोशनी को छिपाए हुए। डगमगाते कदम इस उम्मीद में बढ़े कि कोई आगे मुसकुरा देगा। पिया आसमान तक पहुँची मगर आज तारे नहीं थे वहाँ। आँखें जैसे भरी-भरी, छोटा सा दिल टूट गया। दादी भी कुछ न कह पाई तभी पिया की नज़र ज़मीन पर चमकते एक सितारे की ओर पड़ी।

दौड़ती हुई नन्ही सी जान ने, उस गिरे बिखरे हँसी को अपने हाथों से छुआ। आखिरी सांस भरते हुए आवाज़ आई, “मैं टुटा तारा, किसी की दुआओं ने मारा, मेरी कुर्बानी किसी की खुशी है, यही मेरी ज़िन्दगी है”।

उस रात न पिया सो पाई, न रात सुबह हो पाई। दादी ने पिया को समझाया, “ये दुनिया ऐसी ही होती है, खुद की खुशी के लिए, दूसरों की बली देती है”। पिया को ये बात रास न आई। उसने उसी रात एक दुआ मांगी।

अगले दिन सुबह हुई और रात का इंतज़ार पूरा हुआ। फिर एक बार दौड़ती हुई, बिना रुके, वो उड़ती गई। आज भी राह में वही अँधेरा था मगर पिया की मुस्कान जैसे एक मशाल, हर कदम उजाला करती हुई। पहुँचकर ऊँचाई उसने देखा आज भी वहाँ कोई न था और एक मायूस तारा अब टूटने को था। ये वो गिरा धड़ाम से नीचे, मगर पिया के चेहरे पर एक आरजू बरकरार। जैसे ही तारे ने छुआ ज़मीन, होकर टुकड़े यहाँ वहाँ, चारों तरफ एक बहार छाई, उन टुकड़ों ने फिर ज़िन्दगी पाई। सितारे बन वो लौटे आसमान में, पिया की दुआ रंग लाई।

किसी ने अपनी दुआ में एक सितारे को मार दिया, पिया ने अपनी दुआ से और हज़ारों दुआओं को जन्म दिया।


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