जिंदगी आहिस्ता खा मुझे
जिंदगी आहिस्ता खा मुझे
जिंदगी आहिस्ता खा मुझे मेरे शौख मैंने खुद खत्म कर दिए थे अब मुझे मेरे हिस्से का दर्द सहलाने दे। इस दर्द को लेकर मैं जी रहा हूँ क्योंकि ये दर्द है उन तम्मनाओं के सूख जाने का और ये दर्द है अपनो के लिए जीने का। ये दर्द खुशियों से ज्यादा मुझे जिंदा रखे हुए है खुशियों के रहते लगता मैंने सारे सुख दे दिए अब मुझे खत्म हो जाने में भी गुरेज नहीं लेकिन अभी मुझे जीना होगा अपनो के लिए उनकी जिंदगी में रंग है
सिर्फ मेरी वजह से। मुझे कोई सांसारिक, भौतिक या विषयी चीजों के एकत्रित करने का शौख नहीं है मरने के बाद एकभीचीज का सुख साथ नहीं ले जा सकूंगा। बस इतना चाहिए किमेरे परिवार की जरूरतें या कहूँ तो सिर्फ आवश्यक जरूरतें पूरी होती रहे मैं निर्वाह कर सकूं अपनी जिम्मेदारियों का फिर कहाँ किसकी मंजिल होगी मुझे खुद मालूम नहीं होगा मैं तो मर कर देखने नहीं आऊंगा बस उस परमात्मा से एक ही
गुजारिश है इतना हमेशा करते रहना कि हसाऊं तो सब किसी को मगर किसी की मजाक का कारण ना बनूँ। और घर मेरे बैठे सब मिल कर बाते करें लेकिन कोई मेरे परिवार पर ये उंगली ना उठाये कि तुम मेरे कारण यहां बैठे हो वरना कब के खत्म हो गए होते।
हे प्रभु मुझे ना फलक पर अपना नाम अंकित करना है ना जिंदगी के कुछ खास तौर तरीकों के लिए अपने आप को एक खास पहलू में ढालना है बस मेरी एक विनती है मै अपनी माँ को कभी दुखी ना करूँ मेरी
माँ के दुःख का कभी कारण ना बनूँ। मेरे बच्चो को कोई यतीम कह कर ना बुलाये। मेरी पत्नी का सम्मान मेरे वाक से कभी प्रभावित ना हो वो जिंदगी में कभी अपने फैसले पर मलाल ना करे।
और रही बात संपत्ति की हे दाता तूने बहुत कुछ दिया है इस की चाह में मैं वो पल गवाँना नहीं चाहता जो मुझे मेरे बच्चो को बड़ा होते ना देखने दे।जिसकी कमी मैं अपने बच्चों को कीमती खिलौने देने से नहींं अपना वक़्त देने से पूरा करूँ। मेरी माँ मुझे जब भी याद करें मैं उसके इर्द गिर्द होऊं।मेरे रब मेरे पिता जब इस दुनियां से गए थे तब वह अपने उस दर्द को संभाल नहीं पा रहे थे जो उनके सीने को छलनी कर
रहा था। उस दर्द ने उनकी जिंदगी भर की कमाई दौलत याउनके बनाये रिश्ते कम नहीं कर सके थे। पिछली साँस लेनेतक वो सब चीजों के मालिक थे और उस साँस के रुकते ही
वो एक लाश थे। मालिक वो इस दुनियां में अपनी जिम्मेदारीके बोझ तले दबते गए और अपनी बीमारियों से घिरते गएपता है उन्होंने अपनी जिंदगी का कोई रविवार नहीं मनायाथा
क्योंकि वो हमें संसार का सुख देना चाहते थे आज महसूस करता हूँ काश वो अपने लिए जीये होते। काश वो हमारेसाथ जीयें होते। अब जब उन्हे जिम्मेदारी निभाते निभाते
पता चला वो तो अब कुछ दिनों के मेहमान है तब उनकेपास सिर्फ पास रखा बुखार नांपने वाला थर्मामीटर था साँसों को गति देने के लिये ने बुलाइजर था और हाथ हिलाकर
ठीक का इशारा करने तक की जान। वो भी जी सकते थेकाश जिम्मेदारियों का बोझ थोड़ा सा कम उठाया होता।
वो हमारे परिवार का कर्ज तो आपके सब भाई बहनों के ऊपर था पापा फिर सिर्फ आप ने अपने शरीर को क्यों खेतों को रोपने में लगा दिया। सब ने अपने हिस्से का आज
ले लिया परिवार तो आज भी नहीं रहा पापा। आप भी तोअपने सपने पूरे कर सकते थे आप भी तो कुछ बन सकते थे
आज हम बड़े हो गए है लेकिन उस दर्द को समेटे मेरा सीनाआज भी उनसे लिपटकर रो जाने का करता है काश पापा
आप भी अपने लिए कभी तो जिये होते।अब मैं चंद अशर्फियों को इतनी मौहलत नहीं देंना चाहता कि
वो मेरी माँ का समय मुझसे छीन ले आज माँ पास है उसे खोने का डर पल पल डराता है।
तुझे मैं जिम्मेदारी के तले नहीं रखूंगा माँ। तू जियेगी हाँ बेखोफ होकर जियेगी। और अपनी पत्नी के उन मीठे अहसासों को नहीं दबाना चाहता जो वह मेरे ना होने से तरसे। मैं ही उसका जेठ हूँ मैं ही उसका देवर मैं ही अब उसका ससुर हूँ और मैं ही उसकापिता मैं ही उसका जिक्र हूँ मैं ही उसकी फिक्र। और मैं ही अपनी बेटी के सपनो का कल हूँ मैं ही उसका साया। मुझे साथ जीने के लिये कुछ दर्द सहलाने होंगे पापा।