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ज़रिया

ज़रिया

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सुलझा रहा हूँ अब मैं

उलझे हुए वो धागे,

है जिंदगी कभी तो

पीछे कभी है आगे।


कहती है भीड़ मुझको

जाया क्यों वक़्त करना ?

कैसे उन्हें बताऊँ

ज़रिया है सख्त करना।


कांपे है रूह तेरी

ना छोड़ दे खुदाई,

इतना भरोसा कर ले

दुनिया से लेनी विदाई ।


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