योद्धा
योद्धा
एक काश की तलाश में हूँ
शून्य से दूर आकाश में हूँ
परिकल्पनाओं के पास, यथार्थ से दूर
मै अलग हूँ, पर आप ही तो हूँ
लम्हों में टूटता, लम्हों में जुड़ता
एक ख्वाब, पर देखता तो हूँ
दिन की भीड़ में खोता हूँ मैं
शाम को खुद से मिलता तो हूँ
खफा किस बात से हूँ?
कुछ तकदीर है, कुछ बना पाता तो हूँ
ना शिकन है ना कोई मलाल
जितनी बाजी हारी हैं, उतनी जीता तो हूँ
इंसान हूँ ,कई मसले हैं
पर खुद के ऊपर देख पाता तो हूँ
अक्सर हाथ फैलाता हूँ मैं
ज़रूरत में किसी के काम आता तो हूँ
तसल्ली से समेट रखा है सुकून
अधजला सा ख्वाब लिए, खड़ा तो हूँ।
