STORYMIRROR

PRAGYA VAANI

Abstract

3  

PRAGYA VAANI

Abstract

"उदास"

"उदास"

1 min
125

डबडबाई आंखों से उमड़,

लरसते अधरों का निराश पन।

प्यासे गले की तृष्णा,

चेहरे का सूनापन।


हंसी की आखिरी उकरी लकीर,

उम्मीद को छोड़ता मन।

अंतिम श्वास का बोझ,

धीमा ह्रदय स्पंदन।


रुआंसी जो फैली चारों ओर,

बुढ़ापे संग जवानी सा हुआ बचपन।

अद्भुत ईश्वर गर्त में समाते,

पूस से सूखे सावन।


जिस भी दिशा में देखूं,

म्रृगांक, नक्षत्र, न कहीं प्रभाकरन।

पंचतत्व से कम न एक भी,

फिर भी खोया,

अनूठा उपहारमयी जीवन।


उदास तो हूं मैं, लंबे अरसे से....


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract