Pragya Padmesh

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"वधुपक्ष-वरपक्ष"

"वधुपक्ष-वरपक्ष"

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बिटिया की शादी में मायके की मनोदशा को समर्पित...


समाज से बंध,न नुकुर से परे

बिटिया है अपनी, अकेला कैसे छोडे़?

जो न दें पाये हम, चाह कर भी

ऐसी कोई कभी उसे, विपदा न घेरे।


सपनों से सुन्दर, घर ढूंढा है उसका

बिटिया को कोई, कमी न होवे।

मांगे न हमसे, पैसे न गहने

परिवार से समृद्ध, रिश्ते जो ठहरे।


करनी तो होंगी ढेरों, तैयारी

अनूठे सामर्थ्य को, दुनिया भी देखे।

विदाई मुहूर्त में, ढांढस बंधाते

रूके न अश्रू,उतरे हैं चेहरे।


तू खुश हो, ये आशा रहेगी सदा

हमारी खुशी भी, बंधी अब तुझी से।

हमारी कमी जो, खलेगी कभी तो

गुड़िया हमारी, घर-घर तुझी में।


मौसम बदले,तो आना इस ओर

ये तेरी है दुनिया, तुझी से बसी रे।

आशीषों से सजे, आंगन सलोना

हो स्वर्ग से सुन्दर, महल तेरे।


वधू आगमन पर ससुराल पक्ष की ओर से नववधू को समर्पित...


माथे सिंदूर मुकुट, कुमकुम मोहक बिंदिया,

कजरारी आँखें, जैसे सपनों की सदियां।


होठों में सिमटी, लाली सी हँसी,

गालों पर थमी, सिल्वटों की सखियां।


नाक-कान बंधे अपनत्व में,

अद्भुत चमक में लिपटी, सुन्दर अठखेलियां।


सच्चे मोती सी, है आज्ञाकारी,

बांध आई, सोने से महंगी नक्श-निशानियां।


हल्दी से सजे कदमों की,चौखट पे आहट,

घर-आंगन में खेलती, ढेरों बधाईयाँ।


है पूर्ण अब, परिवार हमारा,

सद्भाव से गूंजी, अनन्त मधुर शहनाईयां।


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