तुम हो तो सब है, तुम हो तो जग
तुम हो तो सब है, तुम हो तो जग
अंदाज़ हो, अल्फ़ाज हो तुम
एक अनकही अरदास हो तुम,
फिर रहे जिस्मो जान में,
वो अनबुझी सी प्यास हो तुम।
अब्र हो तुम, तुम ही धरा हो,
तुम ही जल, आफ़ताब हो,
इत्तिका हो, तुम ही अस्क़ाम हो,
जीवन जहाँ ये खत्म हो,
तुम तो वही अंजाम हो।
कांति हो, श्रृंगार हो
ज्ञान हो, अज्ञान हो
तुम ही मेरा अभिमान हो
क्रोध हो, उन्माद हो
आनन्द भी और ग्लानि भी,
तुम कुछ भी नहीं और
सब कुछ भी तुम,
तुम ही मेरा संसार हो।
