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Gaurav Dwivedi

Abstract

4.8  

Gaurav Dwivedi

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तुम बिन रहूँ मैं कैसे?

तुम बिन रहूँ मैं कैसे?

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ॐ जय श्री राधे-कृष्णा ॐ


तुम बिन रहूँ मैं कैसे? है ये बड़ी पहेली

हर घड़ी याद अब तेरी हर कदम राह बस तेरी 

हर सांस नव निमंत्रण अब तुमको दे रही है 

क्यों दूर जाके बैठे? हर पल यही प्रशन है

सुन धड़कनों की गुंजन अब तो करीब आओ

अब तुम चली भी आओ!


तुम बिन बियाबान सबकुछ, घनघोर है अँधेरा 

हर शब्द मेरा टूटा, हर छंद है अधूरा

जैसे बिना कथानक, हूँ मैं कोई कहानी

जैसे के जल बिना ही, हूँ मैं कोई सरोबर

सावन की बदरी बनके अब तुम चली भी आओ

सूखी हुई धरा पर, अब तुम बरस भी जाओ

अब तुम चली भी आओ!


तुम बिन हैं हम अधूरे, हैं रास सब अधूरे

बिन फूल जैसे डाली, बिन मेघ के हों बदल

है शांत मन की वीणा, सरगम बिना सुरों की

स्वीकार अब तो कर लो, ये वेदना प्रणय की 

मन के सितार पे तुम कुछ राग छेड़ जाओ 

कुछ साज छेड़ जाओ, जीवन तरंग जाओ

अब तुम चली भी आओ! 


इस सांस के निमंत्रण पे, तुम चली भी आओ

इन धड़काओं की गुंजन के गीत तुम बनाओ 

कोरे गगन पे मेरे, अब रंग भर भी जाओ 

मानस पटल पे मेरे, रंगोली सी हो जाओ

हर शब्द वो जो टूटा, उन्हें छंद अब बनाओ

अब तुम चली भी आओ, जीवन के रंग लाओ

तुम चली भी आओ, अब तुम चली भी आओ !


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