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Mahavir Uttranchali

Abstract

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Mahavir Uttranchali

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तकलीफ़

तकलीफ़

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बड़ी तकलीफ़ देते हैं ये रिश्ते

यही उपहार देते रोज़ अपने


ज़मीं से आस्मां तक फ़ैल जाएँ

धनक में ख़्वाहिशों के रंग बिखरे


नहीं टूटे कभी जो मुश्किलों से

बहुत ख़ुद्दार हमने लोग देखे


ये कड़वा सच है यारों मुफ़लिसी का

यहाँ हर आँख में हैं टूटे सपने


कहाँ ले जायेगा मुझको ज़माना

बड़ी उलझन है, कोई हल तो निकले


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