STORYMIRROR

Umme Salma

Abstract

4  

Umme Salma

Abstract

स्वदेश

स्वदेश

1 min
389

आशा के सावन को सींच के

जिसने पतझड को बसंत बनादिया

परदेस की बहारों में डूब के

तूने उस स्वदेस को भुलादि या।


फिरंगी फूलों का नशा

क्या खूब सर चढ़ के बोला

इन महकते फूलों के आगे

अपनी मिट्टी कि ख़ुशबू को तूने भूला।


शाखावों पे लगे फ़ल 

तुम्हें ललचा रहे हैं

तुम क्यों नहीं समझते

ये तुम्हें अपने जड़ों से दूर ले जा रहे हैं।


आजा लौट के नादान परिंदे

बुला रही है तुम्हें अपनी डाली

अभी भी शाख पे करती है बसेरा

सोने की चिरैय्या हिम्मत वाली।


मिलजायेंगे तुम्हें विभिन्न फ़ल वहाँ

शबरी के बेर ना मिलेंगे तुम्हें कही

श्रद्धा सबुरी, प्रेम और शौर्य का संगम

भारत के अलावा और कही नहीं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract