सुन लो निंदा रोज
सुन लो निंदा रोज
जग में संत कबीर ने,
एक दोहा रचा नेराय।
पूत चरित निर्माण को,
है जो पूत उपाय।।
निंदक नियरे रखिये,
आँगन कुटी छवाय।
बिनु पानी साबुन बिना,
निर्मल करे सुभाय।।
पर कौन मुख ही निंदा,
करता है जग माय।
तो कैसे निंदक जानूँ,
दे दो पाथ बताय।।
हे सुजान! जग के सुनो,
इक मेरी भी राय।
इसे कभी जीवन में,
चल देना नहीं विहाय।।
जग में निंदक की सुनो,
अति मुश्किल है खोज।
आपन निंदक ही बनो,
सुन लो निंदा रोज।।