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Arvind Kumar

Abstract

3.6  

Arvind Kumar

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सुन ए कोरोना !

सुन ए कोरोना !

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मैं इंसान हूं,

बुद्धि से प्रखर और 

बड़ा बलवान हूं 

ताकतवर हूं प्राणियोंमेंश्रेष्ठ 

और मैं ही शक्तिमान हूं

हां मैं इंसान हूं, हां मैं इंसान हूं।


रखता हूं तमन्ना छू लेने की 

आसमान को

करता नहीं बर्दाश्त 

अगर कोई आहत‌ करे,

मेरे अभिमान को।


हे कोरोना ! तेरी हिम्मत कि 

तू खत्म कर सके इंसान को ? 

हिम्मत नहीं हारूँगा

तुझे समूल नष्ट कर दूंगा 


तेरे अस्तित्व को मिटा दूंगा

तुझे हरा दूंगा क्योंकि 

मैं बड़ा सावधान हूं,

हां मैं इंसान हूं, हां मैं इंसान हूं।


कुछ पल मैं अपनों से दूर हुआ

तो क्या हुआ ?

क्या मेरा प्यार कम हुआ ?

नहीं, मुझ पर मेरी-

 मां का आशीर्वाद है

 मेरे देश के योद्धा मेरे साथ हैं,

 पुलिस वाले , डॉक्टर नर्स 


सरकारी कर्मचारी 

सब निभा रहे अपना फर्ज

इसलिए तुझे परास्त करूंगा

तुझे समूल नष्ट करूंगा क्योंकि-

मैं अटूट चट्टान हूं

 हां मैं इंसान हूं, हां मैं इंसान हूं।


मेरे देश का मजदूर

आज नहीं है मजबूर 

बेरोजगार हुआ तो क्या हुआ

क्या उसका हौसला कम हुआ ?


नहीं., अपनों से मिलने का

जब प्रश्न हुआ 

अपने गांव की मिट्टी को

 छूने का मन हुआ


तो पहुंच गए सब अपने गांव 

जहां पर है ममता की छांव 

अब वे और अधिक मजबूत हैं

माँ भारती के सच्चे सपूत हैं 

अब ए कोरोना !


चला जा नहीं तो तेरी खैर नहीं 

मान ले कि तेरा हम से बैर नहीं

तुझे मैं हरा दूंगा, मिट्टी में मिला दूंगा 

क्योंकि मैं हिंदुस्तान हूं। 

हां, मैं इंसान हूं हां मैं इंसान हूं। 


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