इन्द्र धनुष का झूला
इन्द्र धनुष का झूला
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जी करता है इस नभ को मैं पेंग बढ़ाकर छूलूँ
इंद्रधनुष के सतरंगी बेड़े मे झूला झूलूँ
या जी करता है पंछी बनकर नभ मे उड़ता जाऊँ
बसंत ऋतु आई है ये कोयल बनकर गाऊँ।
कल कल करती , नदिया बहती , उसका जल बन जाऊँ
रिम झिम- रिम झिम बारीस की नन्ही ,बूंदों मे ढल जाऊँ।।
जी करता है बगिया का मैं पुष्प कुसुम बन जाऊँ
भीनी -भीनी खुसबू से फिर पूरा चमन महकाऊँ।
या जी करता है शबनम बनकर फूलों मे बस जाऊँ,
सुबह सवेरे रक्त किरण मे मोती सा चमक जाऊँ
फूलों के रस मे घूलकर मैं ' बिन्दू' भोरों की प्यास बुझाऊँ
या रंग बिरंगी तितली को मैंं नित नित निज ललचाऊँ
जी करता है इस नभ को मैं पेंग बढ़ाकर छूलूँ
इंद्रधनुष के सतरंगी बेड़े में झूला झूलूँँ।
