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Tripti Dubey

Abstract

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Tripti Dubey

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समय के साथ मेरी एक वार्ता

समय के साथ मेरी एक वार्ता

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एक बार समय के साथ, मेरी हुयी एक छोटी सी वार्ता,

इससे पहले की मेरे मुखः से शब्द कोई निकाल पाता,

मैंने देखा, समय की आखो से अश्रु धारा को बहता !


इससे पहले की मेरे मुखः से शब्द कोई निकाल पाता,

समय के क्रोधित मन से प्रश्न कठिन एक है आता,

ए मानव, तुझे रक्त खेल का खेल क्यों है सुहाता!

विलख रही मानवता, चीखों को तू सुन क्यों नहीं पाता,

मैंने देखा, समय की आखो से अश्रु धारा को बहता !


वार्ता के कुछ पल पश्चात समय रहा था सुबकता,

अपने दुखी हृदय संग समाज से प्रश्न था करता,

ए पुरुष, नारी से इतनी असमानता तू क्यों है करता!

शक्ति की इस प्रतिमा से ही जीवन का संगम है बनता,

मैंने देखा, समय की आंखों से अश्रु धारा को बहता !


वार्ता के कुछ पल पश्चात समय पुनः रहा था विलखता,

अपने भारी मन से हमसे प्रश्न कठिन रहा था पूछता,

पर्वत वन जंगल में जीवन का संगीत मधुर है बहता!

ए मानव, निर्दयी ह्रदय से तू क्यों अंत इनका है करता,

मैंने देखा, समय की आखो से अश्रु धारा को बहता !


वार्ता के कुछ पल पश्चात समय था फूट फूट कर रोता,

अपने द्रवित ह्रदय की दुःख धारा संग प्रश्न रहा था पूछता,

घायल सृष्टि सुबक रही है, तेरा ह्रदय क्यों नहीं है पिघलता !

ए मानव, मार्ग ये तेरे के अंत का है तू नहीं क्यों समझता,

मैंने देखा, समय की आखो से अश्रु धारा को बहता !


वार्ता के निरंतर क्रम में समय चीख चीख कर था पुकारता,

ए मानव, जाग बन कर्त्तव्य परायण ये तेरी ही है सभ्यता,

इसके संरक्ष्ण में ही है निहित मानव की सर्वोपरि सफलता!

आखिर तेरे मन मंदिर में ये मधुर भाव क्यों नहीं है आता,

मैंने देखा, समय की आखो से अश्रु धारा को बहता !


एक बार समय के साथ, मेरी हुयी एक छोटी सी वार्ता,

इससे पहले की मेरे मुखः से शब्द कोई निकाल पाता,

मैंने देखा, समय की आंखों से अश्रु धारा को बहता !


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