सफ़र मुसाफ़िर का
सफ़र मुसाफ़िर का
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हर इंसान मुसाफ़िर होता है
कभी प्यार के लिए
कभी रिश्तों के लिए
कभी अपनों के लिए
कभी अपने लिए
आने वाले सफर से
अनजान डगमगाते हुए
कदमों के निशान
छोड़ता हुआ पीछे
दिल में एक आस लिए
कभी सूरज की रौशनी में
कभी चाँद की चांदनी में
कभी हँसते हुए
कभी रोते हुए
मुसाफ़िर
चलता ही रहता है।