प्रकृति आज मानव से नाखुश
प्रकृति आज मानव से नाखुश
प्रकृति आज मानव से नाखुश।
परिवर्तित ऋतु चक्र कर रही।।
मानव दंभी दंभन छाड़त,
बिन मौसम बरसात चल रही।।
आत्महत्या नहीं आत्म चिंतन करो।
भूमि पुत्रों नहीं व्यर्थ क्रन्दन करो।।
प्रकृति छेड़खानी से नाखुश हुई
अस्तु मौसम बदल करके बिफरी हुई।
राजनेता तुम्हे व्यर्थ बहका रहे
मन में धीरज धरो आत्ममंथन करो।।