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Mahaveer Singh

Abstract

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Mahaveer Singh

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प्राइवेट नौकरी

प्राइवेट नौकरी

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रोज़ है जाना रोज़ है आना,

पर नहीं पता कब न हो जाना।

सुन कर करना, कर के सुनना

यही है इस नौकरी का भेद।


न जाने कब नींद से उठा दे,

किस पल नींद ही उड़ा दे।

अपेक्षा,आकांछाओं और

आकाओं का जटिल मिसरड़ है यह।


सब सुख इससे,

सबको मनभावन लागे यह।

छुड़ा दिये हैं घर संसार जगत के,

जो इसको पा जाये।


कोई है ऊपर कोई,

उसके उपर,

चाहे सब जाना सबसे ऊपर।


जो है सब के उपर देख रहा वह,

कौन गिरा रहा है किस को

किस के उपर।


दोस्ती है नौकरी से और

नौकरी से है दोस्ती।

कितनी दोस्ती किस से दोस्ती

सब सिखाती है नौकरी।


शिद्दत, महेनत और परिणाम

हैं नौकरी के आयाम।

नौकरी है नौकरी

नौकरी बिन कुछ और नहीं।


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