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सुरेन्द्र मेवाड़ा 'सुरेश'

Abstract

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सुरेन्द्र मेवाड़ा 'सुरेश'

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पंख

पंख

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पंख अगर मेरे भी होते

आसमान की सैर करता

यूँ मैं उड़तेउड़ते

जीवन कितना सहज हो जाता

ऐसे झुमते गाते।


मैं तारों को छू लेता

ऐसे हंसते-हंसते

उड़ता रहता हर जगह

पूरा जगत घुमता

होती हर आजादी

हवा से बन जाता एक नाता


होता सुख-चैन जींदगी में

दुख सारे खो जाते

आसमान की सैर करता

पंख अगर मेरे भी होते।


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