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Bhagyashree Lanke

Abstract

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Bhagyashree Lanke

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पीछा

पीछा

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चलो आज बताती हूं तुम्हे

एक राज़ गहरा।

हमेशा भीड़ में ढूंढती हूं,

सिर्फ तुम्हारा चेहरा।


सुबह उठती हूं

तो सोचती हूं।

क्या आज फिर दिखोगे ?

कभी आगे से कभी पिछेसे

फिर मेरा रास्ता काटोगे ?


वैसे तो एक अरसे से

तुम दिखे नहीं हो।

कहीं किसी गली में

तो छुपे नहीं हो।


डरती हूं के कभी

अचानक से सामने दिखोगे,

नफ़रत का तेज़ाब

फिर मेरे मुंह पर फेकोगे।


मन में मेरे आतंक का बीज

तुमने जो ये बोया है,

चहरे पर दुपट्टा बांधकर भी 

दिल का चैन मैंने खोया है।


मोहब्बत करना,

बेइंतहा किसी पर मरना,

पर कभी वह मना कर दे,

तो खुदा के वास्ते,

उसका पीछा मत करना।


ग़लत तुम हो,

मगर सज़ा मुझे मिल रही है।

देख रब्बा, तेरे दुनिया में

मोहब्बतें ऐसी भी खिल रही हैं।


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