फूलों का फर्ज
फूलों का फर्ज
बागों में यूँ तो फूल खिलते है हजार
पर हर फूल का एक मौसम आया होगा ना।
किसी से बाग खिले महकाए,
कोई सूखे और मुर्झाए
जो बेजान पडा है उसने भी कभी
इस बागीची को महकाय़ा होगा ना
इस का भी तो एक मौसम आया होगा ना।
किसी के बने बंदनवार
कई चड़े मंदिर के द्वार
और किसी ने चौराहे पे बिक कर
एक भूखे बच्चे को भरपेट
खाना खिलाया होगा ना।
एक मौसम हर फूल का आया होगा ना
हर फूल ने अपना फर्ज निभाया होगा ना।