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Archana Garg

Abstract

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Archana Garg

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फिर हिंदी में बतियाएंगे...

फिर हिंदी में बतियाएंगे...

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मैं हिंदी में बतियाती थी

मैंने हिंदी में पढ़ना सीखा

हिंदी में मैंने चलना सीखा

और हिंदी में ही उड़ना सीखा

पर जब उड़ने की बारी आई

हिंदी की मुझको याद ना आई

क्योंकि

जब मैं थोड़ी बड़ी हुई तो

परी से जब फेअरी हुई तो

परिवर्तन को हमने एक्सेप्ट किया

हिंदी को थोड़ा नेगलेक्ट किया

खुद को अंग्रेजी में एक्सपर्ट किया

लाइफ का टारगेट सेट किया

मेरे रंग ढंग सब नए हुए

नहीं शब्द थे,अब वो वर्ड्स हुए

हिंदी जो मेरी भाषा थी

अब समझ नहीं वो आती थी

क्योंकि

अंग्रेजी में उड़ना चाहती थी

मैं पंख फैलाना चाहती थी

भाई अंग्रेजी थोड़ी सेक्सी थी

घागरा नहीं वह मैक्सी थी

गाड़ी भी अब तो टैक्सी थी

आकाशगंगा गैलेक्सी थी

पर

अब मैं अम्मा दो की हूं

जो हिंदी में बातें तो करते हैं

पर हिंदी पढ़ने से डरते हैं

हिंदी में बढ़ने से डरते हैं

वह अंग्रेजी में हंसते हैं

लड़ते और झगड़ते हैं

जब मैं उनको तकती हूं

अक्सर घबराने लगती हूं

क्या यह उनकी गलती है

मैं ऐसा सोचा करती हूं


जब बच्चे मेरे छोटे थे 

हिंदी का वाचन करते थे

'स्पीक इन इंग्लिश' कहकर

तब उनको हम टोका करते थे

वह ठंडी आहें भरते थे

और इधर उधर की करते थे

तब 'स्पीक इन इंग्लिश' कहकर

हम ही रोका करते थे

उनको

चीजें बहुत सिखाई हमने

किताबे बहुत दिलाई हमने

यहां तक कि रामायण और पंचतंत्र भी,

अंग्रेजी में पढ़ाई हमने


समय रहते हम को जगना होगा

अगली जनरेशन पे काबू करना होगा

हिंदी में उन को प्रेरित कर

हम हिंदी उन्हें सिखाएंगे

मां बाप बन के जो गलती की

दादा-दादी में ना दोहराएंगे

नन्हे मुन्ने जो आएंगे

हम हिंदी के गीत सिखाएंगे

जल्दी ही आएगा वह दिन

जब हिन्दी बच्चे हिंदी से ना कतराएंगे

वह हिंदी को अपनाएंगे

और हिंदी की रट लगाएंगे


सही मायने में हम तब ही

हिंदी दिवस मनाएंगे।


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