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Manju Saini

Inspirational

4  

Manju Saini

Inspirational

पेड़ की व्यथा

पेड़ की व्यथा

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मैं हूँ बूढ़ा वृक्ष जीर्णशीर्ण 

अपनी काया को लिए खड़ा हूँ

सदियों से देख रहा हूँ आते जाते मुसाफिरों को

आज न जाने क्यों अपने पर फ़क्र होता हैं


आज प्यार कुछ पाया हैं राहगीर आज रुकते हैं

मैंने अब तक सब दिया ही हैं 

आज ये जीर्ण काया लिए खड़ा हूँ

मिला जो प्यार मुझे आप सब का 


आज दोस्त सभी को बना लिया मैंने

जो भी यहाँ से गुजरता हैं स्नेह दे जाता हैं

तुम भी आज रुकी मेरे संग इस तस्वीर में

खुश हुआ आज मैं भी अपनी जीर्ण काया पर


मैं हूँ सपनों का सतरंगी सा पेड़ था कभी

हरा भरा फल फूलों से लधा हुआ

मैं भी जीवन के गीत गाता था खुश था

अपना सब अर्पण करता था ईश्वर की इच्छा सब


अब जो भी गुजरता हैं स्नेह दे जाता हैं

भीतर चल रहे सभी द्वंद्वों से मुक्ति सी मिलती हैं

स्वतः ही बिखरे सपने सिमटे से लगते हैं

तब मैं था अब भी गर्व से खड़ा हूँ जाने कब तक


कहीं कुछ अव्यक्त सा कहीं कुछ व्यक्त सा

कुछ अनछुए से दर्द मेरे कभी पीड़ा से देते हैं

ढूँढता हूँ आज भी वो पुराने लम्हें

स्वयं ही सुलझते हुए स्वयं ही उलझन भी मैं ही हूँ 


उलझन का हल भी हूँ क्योकि बूढ़ा वृक्ष हूँ मैं

पुराना, जर्जर, उदास सा सीधा खड़ा हूँ आज भी

जिन्हें शब्द रूप देकर कागज पर उकेरा आज

खिल गई हैं मुरझाई मेरी मुस्कान आज'मंजु'।


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