पचपन में बचपन
पचपन में बचपन
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दौड़कर देखती हूं,
क्या अब भी हवा
चलती है साथ मेरे,
कागज़ की किश्ती से
पूछती हूं, क्या अब भी
आयेंगे बादल घनेरे,
मोहल्ले के बच्चे जो
बड़े हो चुके, उनसे पूछती हूं
क्या उनके बच्चे भी खेलेंगे साथ मेरे,
जलेबी संग दूध,
बेरियों के बेर से पूछती हूं
क्या अब भी लगेंगे
बचपन के मेले।
जाने कहां गई वो दोस्तों
की टोलियां,
दवाई, डॉक्टर, बीपी
जाने हो गए हैं
क्या क्या झमेले।
काश! पचपन में भी
जी पाऊं बचपन,
भर लूं खुशियों के झोले।
