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Kumar Vivek

Abstract

4  

Kumar Vivek

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नारी की दुर्दशा

नारी की दुर्दशा

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 आज 21वीं सदी की नारी भी चीख रही है

कभी दुशासन तो कभी दरिंदों से अपनी साड़ी खींच रही है l

वो रो- रो बिलक- बिलक कर एक ही गुहार लगा रही है

 कोई मेरी मदद करो कोई मेरी मदद करो

यह वाक्यांश केवल वह दोहरा रही है।

 चाहे वह द्रोपदी हो या निर्भया


अपने सम्मान हेतु वह लड़ रही है।

परंतु इस जालिम दुनिया में आज भी

सरेआम दुशासन और लुच्चों की मनमानी बढ़ रही है।

कभी चीरहरण तो कभी अम्ल प्रहार

कभी-कभी तो इज्जत तक लूटी जा रही है l


इन दरिंदों के द्वारा हमारी घर की ही

बहू बेटियों की गरिमा मिट्टी में मिलती जा रही है ll

आज की बेटी अपने ही घर में क्यों डर रही है

?

क्यों वो अपने घर में सभी की मार से आ रही है ?

तो क्या नारी होना पाप है ? क्या फुलवारी होना अभिशाप है ?


तो मैं यह बता दूं कि नारी से ही आप है ll

नारी हर एक ग्राम को दुनिया को एक संदेशा है

वही है मीरा वही है राधा वही तो मदर टेरेसा है l

और झांसी की आन बचाती नारी कभी वो लक्ष्मीबाई हैं

अपने अपने पति के स्वाभिमान की रक्षा हेतु उसने घास की रोटी भी खाई है ।


सो नारी सरस्वती है दुर्गा है और महालक्ष्मी की स्वरूपा है

तो कभी चंड मुंड का सहार करती मां काली की रूपा है l

नारी है तो यह सृष्टि है वरना किस चीज की उत्पत्ति है ?

इसलिए इसलिए नारी सबसे सरल शील

और प्यारी उस विधाता की कृति है ।



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