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Shivani Dhek

Inspirational

4.3  

Shivani Dhek

Inspirational

मुझ में ही मैं थी

मुझ में ही मैं थी

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जिंदगी की भीड़ से सहम सी गई थी

अजीब है ना कभी उम्र ही कितनी थी

हालातों ने इतना उलझाया था

सब जानते हुए भी कुछ समझ न आया था।


लोगों के सहारे ने और लाचार बनाया था

खामोशी से दोस्ती कर

नींदों के सहारे समय बिताया था।


पर क्या अब यही मेरी जिंदगी थी

न मंजिल तो कुछ और ही थी

ऊपर आसमानों में फैसले हुए हैं

वह तो हकीकत से कुछ और ही थे।


ठाना मैंने अब बस बहुत हुआ

खामोशी से झगड़ा कर मुस्कुराहट को चुना

पर मंजिल ढूंढना आसान नहीं था

4 -5 विचार लिए दिल फिर उलझा पड़ा था।


अपनी मंजिल की धुंधली तस्वीर अब भी सामने थी

कहां जाऊं क्या करूं कुछ पता ना था

शायद एक चमत्कार का इंतजार था

कोई आपकी जिंदगी बदलेगा मन में विश्वास था।


और फिर एक गलत रास्ता चुन लिया था

यही समझने में मैंने फिर वक्त बर्बाद किया था

बहुत देर में समझ आया जादू तो होगा और वह

मुझ में ही है पर जिंदगी के फैसले की खुद ही लूंगी।


धीरे-धीरे खुद को समझा खुद के साथ वक्त बिताया

फिर एक नया रास्ता अपनाया

सपनों में हौसले भरे अपने सपनों को उड़ान दी

और मैंने वो पाया जिसकी हमेशा से मुझे तलाश थी।


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