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Dr. Anu Somayajula

Others

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Dr. Anu Somayajula

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मशीनी दौड़

मशीनी दौड़

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आदमी भी अजीब है

फूला नहीं समाया

चौपाए से दोपाए हुआ जब

अपने दो पैरों की क्षमता पर

अचरज भी करता

गर्व भी


नहीं रहा जब एक

साथ दिया बैसाखी ने

चलता गया

कभी कभी लकड़ी का पांव लिए

चला न पाया जब

साइकिल, स्कूटर या मोटर

नए नए पुर्ज़े हैं जोड़ लिए


दो और दो का गणित जोड़कर

उगा लिए हैं चार पांव अब

अपने वाहन के

चलते जाते जो फर्राटे से

गलियों में, सड़कों पर

उड़ते कभी

कभी चीरते रेत की चादर को

और कभी तैरते लहरों के आंचल पर


दौड़ मशीनी होती रही

पांव निष्क्रिय होते गए

नियति के खेल में

दोपाए एक बार फिर चौपाए बनते गए



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