मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी
ठीक हूँ, थोड़ा परेशान हूँ,
मगर सच से अंजान हूँ,
कौन कहता है है कि सब अकेले हैं
देखो परछाई तो मेरे ही साथ है
बहुत लोगो से मिला है ये दिल,
ख्वाहिश बस यही लिए रहा कि कोई दिल से मिल जाए,
कहने को सब यार हैं,
उन सब की मै जान हूँ,
मगर बेखबर है वो सब भी,
शायद मै ही सच से अंजान हूँ।।
अब औरों को क्या और क्यूं ही कहूँ,
अंधेरे का जबसे मै हुआ हूँ
मेरी परछाई भी धूमिल हो कहीं छिप जाती है।।
लेकिन उजाले में भी तो था तो
परछाई मेरी कहां नजर आई थीं
हर दर्द को अब जी रहा हूँ
क्योंकि जिंदगी में सुकून पाने का ,
इन्हीं दर्दो से हुनर मै सीख रहा हूँ।।
कभी दर्द हो तो मुस्करा कर खुद से कह लेना ,
मगर जिंदगी को कोसने से पहले उन तमाम खुशियों को सोच लेना।।
होता किसको नहीं है गम, आज मै ये सोच रहा हूँ,
सोचने के बाद निष्कर्ष ये है निकला ,
जिंदगी में मै दूसरो से तो कम गमों में जी रहा हूँ
बस इस निष्कर्ष के बाद देखो प्रशांत कितने सुकून से ,
एक बार फिर से जिंदगी के उतार चढ़ाव लिख रहा हूं।।