मेरा स्वाभिमान
मेरा स्वाभिमान
मेरे स्वाभिमान को मत ललकार,
मैंने इतिहास बदला है इतिहास रचाकर,
अगर आई मैं अपनी हद में,
तो तू पछताएगा अपनी हद जताकर,
कभी तू भाई तो कभी मामा बनकर आया,
कभी दोस्त तो कभी हमसफर बनके है सताया,
कोशिश तेरी कुछ काम तो आई,
बस मिली नहीं तुझे वजूद तेरा सब मुझसे छीनकर।
मेरे स्वाभिमान को मत ललकार,
मैंने इतिहास बदला है इतिहास रचाकर।।
जैसे लकड़ी जलती आगे देख पीछे जाकर,
तेरा वजूद भी मिटेगा वैसे राख होकर,
कभी नज़रों से तो कभी बातों से की है कोशिश,
तूने हर बार मुझे गिराने की करी है साज़िश,
तेरे वार तेरे प्रहार से नहीं लगता है डर,
कभी तो सामने आ असली मर्द बनकर,
मेरे स्वाभिमान को मत ललकार,,
मैंने इतिहास बदला है इतिहास रचाकर।।।
औरत हूं ना समझ कमजोर मुझे,
तेरी बराबरी करने पर भी दूंगी इज़्ज़त तुझे,
अकेली चलती हूं सड़कों पे ना मान मौका मुझे,
कर अदा फर्ज़ अपना फल मिलेगा
इसी जन्म में उसका तुझे,
सीता हूं कहीं पर कहीं द्रौपदी भी हूं मैं,
लंका दहन तो, दुःशाशन का काल थी मैं।
मेरे स्वाभिमान को मत ललकार,
मैंने इतिहास बदला है इतिहास रचाकर
क्यौं देखता बुरी नजर से दूसरे की बेटी पे इतना,
कल भगवान दे बेटी तुझे होगा तेरा भी ये सपना,
अंधेरे में चलती मदद को थी वो जब आई,
तुझ से तो आठ महीने की बच्ची भी न बच पाई,
इतराता है गलत काम करके खुद पे तू इतना,
क्या बचने का ऊपर वाले से अब भी देख रहा है सपना
मेरे स्वाभिमान को मत ललकार,
मैंने इतिहास बदला है इतिहास रचाकर।
बदला है इतिहास हमेशा, बदलूँगी एक दिन ये जमाना,
खुद सीख पहले फिर दूसरे को सीखना इज़्ज़त कामना,
आज हूँ चुप शायद कुछ सही करना है सोचकर,
कल बदलेगा मेरी आँखों मे बसे सपने के सच होकर,
भविष्य है मेरा आज मेरे हाथ में अपना मानकर,
खुद मिटी पर हस्ती कैसे मिटेगी मेरी जान लेकर,
मेरे स्वाभिमान को मत ललकार,
मैंने इतिहास बदला है इतिहास रचाकर।।।
(जो भी हूँ जैसी भी हूँ, औरत हूँ ये सोचकर मुझे कमज़ोर समझने की ग़लती मत करना)
