मेरा घर मेरी माँ
मेरा घर मेरी माँ
मेरा घर इतना सज़ा ना होता,
अगर उसमे मेरी माँ का आसरा न होता,
मेरा सोच इतना बड़ा न होता अगर,
मेरी मां का आशीर्वाद मेरे साथ न होता,
मेरी ख़्वाबों को पर न लगता,
अगर तेरी दुआओं का असर ना होता
वो ज़मीन पर हर बार गिरने वाला मैं,
कभी खड़ा न होता, अगर मेरी उंगलियो को
माँ तुमने थामा ना होता,
मेरी आंखें भी दुनियावालो की तरह नाम होती
अगर तुम्ने इनको अपना हस्ता चेहरा दिखाया ना होता ,
सब काले कहते मुझे अगर,
तुमने उन पर जोर से चिल्लाया ना होता,
और मुझे काले को अपना राजा बेटा कहके बुलाया ना होता,
मैं जिंदगी के इस भेड सवारो की तलाश में रहता,
अगर तुमने मुझे ये दुनिया दिखाया न होता,
अगर तुमने अपने मां बनने का किरदार निभाया ना होता,
मैं जीतना कभी सीख ही न पाता अगर तुमने मेरी हर गल्ती को आखिरी बताया न होता,
आज मुझे भी सायद ऐहसास होता की थंड क्या होता है,
अगर तुमने अपने आंचल में मुझे छीपाया न होता,
सुबिधाओ या सहारो की आभाव में मैं कभी खुलके उड़ न पाता,
अगर तुमने मुझे अकेला परिस्थिओ का सामना करना सिखाया न होता,
खुशनसीबी क्या होती है सायद ये भी ना जान पता,
अगर मेरा तुम्हारी कोख से जनम ना होता,
दुआएं कितनी सिद्धत से की जाति ह ये मुझे पता न होता,
अगर मेरे बीमार होने पर वो पवित्र लोर भगवान से
प्रथना करते हुए मेरे माथे पे गिरा ना होता,
मैं खुदको खुद मे देख न पाता,
अगर तुमने खुदको मुझे मे बसाया न होता,
दुख में मैं कभी सुख देख न पा,
अगर तुमने उस कटोरी में रखी उस सुखी रोटी के साथ
चांदा मामा के गुड वाले लोरी सुनके मुझे हसाते हुए खिलाया ना होता,
इतनी बड़ी पहेली (जिंदगी) को सयाद कभी मै सुलझा ना पा,
अगर तुमने अपने मां बनने का किरदार निभाया न होता।