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Ashish Kumar

Classics

3  

Ashish Kumar

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मां

मां

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दफ़्न कर खुद की ख्वाहिशों को,            

सपने सजाती रही माँ।

लोरियां गा रातों मे सुलाती रही माँ,

खुद गीले मे सो सूखे में सुलाती रही।


हर दर्द सहती हमेशा मुस्कुराती रही,

ममता के मोती वो हर पल लुटाती रही।

तुतू गिरता रहा वो उठाती रही,

चलना तुझे वो सिखाती रही।


महफूज़ था, कल तक आंचल में जिसके,

आज तू उसे छोड़ तन्हा कहां चल दिया।

क्याॽ याद नहीं तुझको वो पल,

कि कैसे वो बन के परछाई तेरी,

तुझको जीना सिखाती रही।


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