लॉकडाउन
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ठहर गयी ये जमीं, ठहरा हुआ आसमाँ
पर्वतों कि करवटों में, पंछियों की चहचहा।
खिलखिलाते फूल भी है, मुश्कुराये धूल भी है
जगमग करते तारे है, निर्मल बहती धारे है।
हवा भी आज मौज में, गुजर रही आसमानो से
बिछरे भी याद कर रहे, हमें किसी बहानो से।
भाग दौड़ कि ज़िंदगी में, साथ मिला है अपनों का,
हाथ बँटाए अपनो का, चल जीले ज़िंदगी सपनो का।
इस ठहरे हुवे पलो का, क्यूँ ना हम सम्मान करे
समझे ज़रूरतो को, क्यूँ बाहर चक्का जाम करे।
जग सुंदर था-जग सुंदर है, जग सुंदर रहे तो जान है
कुछ ना बचे जग में तो फिर, काहे का अभिमान है।
पशुओं को भी आज मिला, इक नया जीवनदान है,
कुदरती आफ़त नहीं ये, नियती का विधान है।