ललकार
ललकार
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प्रत्यंचा खींच गयी है गाण्डीव धनुष की,
बज उठी है रणभेरी दुश्मन पर प्रचंड जीत की।
वसुधैव कुटुम्बकम की धरा को तूने ललकारा है,
न भूलो विजय का गौरवशाली इतिहास पुराना है।
मानवता के पुजारी है हम अनंत काल से,
युद्ध की पिपासा नही सदियों में हमारे व्यवहार से।
छल प्रपंचो की भाषा नही हमारे स्वभाव में,
विश्वास जग का जीता हमने पंचशील सिद्धान्त से।
चुनौतियों से बिन घबराए लड़े है आन बान से,
राष्ट्र रक्षा हेतु सर्वस्व अर्पण करते है हम शान से।
मानवता को धौंस दिखाना तेरा काम न आएगा,
शूरवीरों के पराक्रम से तू निश्चित ही शिकस्त खाएगा।
आगाज दुस्साहस का कर तू बहुत पछताएगा,
मां भारती के रणबांकुरों के हाथों मिट्टी में मिल जाएगा।
गलवान में खोंपा खंजर ड्रैगन हम न भूल पाएंगे,
रक्त के कतरे कतरे का सूद वसूल कर हम जाएंगे।
वतन की मिट्टी करे पुकार अब तो जागो मेरे लाल,
धर्म जाति से ऊपर उठकर बन जाओ वतन की ढाल।
चिरनिंद्रा से जगना होगा निज हितों को तजना होगा,
त्याग चीनी उत्पादों को ड्रैगन को पस्त करना होगा।