क्या खुद को जानता हूं
क्या खुद को जानता हूं
इक सवाल हर वक़्त मैं
खुद से पूछता हूं,
क्या मैं खुद को जानता हूं
क्या मैं भीड़ में रोना जानता हूं,
या फिर खेलते बच्चे की
अठखेलियां देख,
मुस्कुराना जानता हूं
क्या मैं खुद के शब्दों को,
सबके दिलों में उतारना जानता हूं
कुछ फर्जी सा दिखाई पड़ता हूं,
या खुद को कागज़ पे
उतारना जानता हूं
सिर्फ अभिनय ही सा
करता लगता हूं,
या खुद को जीने के
काबिल भी मानता हूं
अंत में यही एक सवाल
रह जाता है मन में,
क्या मैं खुद को जानता हूं
क्या मैं खुद को जानता हूं।