Pihu Singh

Abstract

4.5  

Pihu Singh

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कुछ संभलने लगे हैं

कुछ संभलने लगे हैं

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डगमगाए जो कल कदम थे मेरे ,

आज कुछ संभलने लगे हैं,

घबराए जो कल ख्याल थे मेरे ,

आज कुछ सुलझने लगे हैं,

अंजानी सी थी दुनिया जो कल

आज थोड़ा बहुत उसे भी समझने लगे हैं,

हर वक्त हर घड़ी परेशानी थीं कभी

भीड़ थी बहुत मगर फिर भी अकेले थे सभी,

तब नहीं ज़ेहन में आया था ये ख्याल

मगर आज इस भीड़ को भी थोड़ा परखने लगे हैं ,

डगमगाए जो कल कदम थे मेरे ,

आज कुछ संभलने लगे हैं,


अन्धकार का अंत तो शायद करने लगे हैं,

अकेले नहीं हैं अब अक्सर खुद से मिलने लगे हैं,

दूसरे क्या ही संवारेंगे अपनी ये ज़िन्दगी

इसके खातिर हम अकेले ही सबसे लडने लगे हैं,

उजाले की ओर अब हम कदम रखने लगे हैं,

डगमगाए जो कल कदम थे मेरे ,

आज कुछ संभलने लगे हैं।



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