किनारा
किनारा
मन रूपी नाव पर होकर सवार
सबको जाना है भवसागर पार
कितने तूफान कितने झमेले हैं
राह में ऊंची ऊंची लहरों के रेले हैं
कुछ सुंदर टापू मन को लुभाते हैं
मंजिल से डिगा अपनी ओर बुलाते हैं
परेशानियां समुद्री जीव बनकर
इस नाव को पलटना चाहती हैं
कुछ अपने ही लोगों की साजिशें
बीच भंवर में रोकना चाहती हैं
मन रूपी नैया का मांझी मस्तिष्क
दुनिया के मायाजाल में फंस ना जाये
इस नैया को बीच भंवर में छोड़कर
सागर की लहरों में बहक ना जाये
चांद तारों से लेकर हौसला बढना है
अपनी मंजिल को अपने नाम करना है
ईश्वर नाम का मजबूत चप्पू तेरे पास है
फिर किसी झंझावात से क्या डरना है
यूं ही चला चल राही , अनवरत
बिना थके, बिना डरे, बिना डिगे
एक न एक दिन किनारा मिल ही जायेगा
राह में जो रह गये उन्हें कौन जानता है
मंजिल पर पहुंचकर तू अपना नाम
सिकंदरों की सूची में जरूर लिखवायेगा ।