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Yayawargi (Divangi joshi)

Abstract

4.4  

Yayawargi (Divangi joshi)

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ख्यालो की दुनिया

ख्यालो की दुनिया

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नहीं जिया जाता इस हकीकत के शहर में

मुझे मेरी ख्यालों की दुनिया चाहिए

जहां बिना किसी डिग्री के मैं मनचाहे वो बन जाती

मैं प्लेन उड़ाती, मैं ही कागज़ की नौका भी चलाती

एक ऐसी कहानी हो अंत में जीत अच्छाई की हो

ये ज़िन्दगी की कहानी तो कभी ख़तम ही नहीं होती

ये बहुरूपी चेहरों का सहवास सहा नहीं जाता

इस हकीकत की दुनिया में जिया नहीं जाता


एक झलक के लिए घंटों इंतज़ार करना

उसका सामने देखते ही पागलों की तरह मुस्कुराना

किसी की कही एक बात हज़ारों दफा दोहराना

ये जिस्मानी मोहब्बत का रिवाज निभाया नहीं जाता

इस हकीकत की दुनिया में जिया नहीं जाता


मेरी दुनिया में आज भी नन्ही परियाँ रहती है

सपने सजाती है कहानियाँ बुनती है

मेरी दुनिया में कहीं पे जाने के लिए वीसा नह

ीं लगता

मेरी दुनिया में किसी से मिलने के लिए समय नहीं लगता

मेरी दुनिया में सपने सच करने के लिए पैसा नहीं लगता

हर कहानियों का सुखद अंत होता है

हर संघर्ष का एक परिणाम होता है

दो प्रेमी अंत में मिल जाते है अगर बिछड़ते है तो मर जाते है

किसी और के साथ उसका सुखी संसार नहीं होता

छोड़िए हकीकत में तो ख्यालों वाला प्यार ही नहीं होता


हकीकत ही असल छलावा है, ये सपने ही तो है मेरी हकीकत

जब थक जाती हूँ इन बेमतलब की बातों से

सो जाती हूँ खो जाती हूँ मेरी दुनिया में

जहां मिलती हूँ खुद से जहां आज भी एक कहानी है

दो किरदार है, परियाँ है, जादू है ना सोने पे आते भूत है

जहां में नायाब हूँ जहां मैं सिर्फ मैं हूँ

न बेमतलब की जिम्मेदारियाँ

बस में और मेरी खयालों की दुनिया !


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