इश्क़ निशिला या जाम
इश्क़ निशिला या जाम
हाँ ,मैंने भी जीना सीख लिया था
दुनिया के दिए दर्दों को सीना सीख लिया था
हाँ, पर कुछ जख्म थे जमाने में जो सिले ना सिलाये,
तो उनके लिए मैंने भी थोड़ा पीना सीख लिया था
जब इसकी घूंट लगा कर घूम गया,
मित्र तो मित्र जब दुश्मनों के साथ भी झूम गया
तब समझ में आया ये चीज बड़ी कमाल थी
सच कहूं तो लगता था जैसे बड़ी कोई धमाल थी,
अब थोड़ा या ज्यादा का ख्याल किसे था
अब इसको पीने में सवाल किसे था
ना तो दिन हकीकत लगती थी
ना ही रात हकीकत लगती थी,
बस इसके साथ बिताई वो दो पल हकीकत लगता था।
अब तो मैं भी घमंड से चूर हो गया
सच कहूं तो ताकत पर इसकी मुझे भी गुरुर हो गया।
एक दिन फिर पीकर मचलता निकला था
सच कहूं तो अपनों की नजरों से थोड़ा संभलता निकला था,
तभी अचानक नज़र पड़ गयी एक नूरानी छाया पर
दादी माँ की कहनियों वाली एक परी की काया पर,
या कह लीजिये की नज़र पर गयी थी स्वयं महा चंचला माया पर
जब ठीक से देखा उनको तो होश मेरे उड़ गए
बस उनके एक इशारे से मेरे दिल के तार उनसे जुड़ गए ,
अब तो धीरे धीरे मुझको सब याद आने लगा
वो गाँव वाले बसंत के दिनों में मन खो जाने लगा,
वो पहली बार बचपन में भींगे थे जिन बरसातों में
बस वहीं आनंदमयी एहसास उनको देख कर याद आने लगा।
एक बार जो उन्होंने अपनी आँखों से मुझको पिला दिया
नशे में था मै फिर भी अंदर तक मुझको हिला दिया,
उनकी नजरों के सामने ये जाम बेकार हो गयी
और इसके साथ बिताई हर वो शाम बेकार हो गयी,
सच कहूं तो उनको देख कर ये मेरी ईमान बेकार हो गयी
उनकी जरा सी हंसी पर मेरा मन सारी चोटों से उभर गया था
और दिल का हर जख्म एक एक करके भर गया था
जो कल तक नागवारा था, वो मुझको अब गवारा हो गया था,
अब तो ये संसार मुझको अपनी जान से प्यारा हो गया था
अब धीरे धीरे मुझको सच में,
जीने का मजा आ रहा था
और प्यार का ये महानशा धीरे धीरे मुझ पर छा रहा था।
