STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

हरिपद छंद - वसंत पंचमी

हरिपद छंद - वसंत पंचमी

1 min
366


शारद माता का है यह दिन, वसंत पँचमी आज।

निज मन मे हम सभी धारकर, करते लेखन काज।। 


मातु कृपा होती है जिन पर, उसका होता नाम।

जैसा करते कर्म आप हम, वैसा ही अंजाम।।


मातु शारदे को करते हम, नित्य नियम से याद।

बिना कहे भी सुन लेती वह, होती मम फरियाद।।


छाया है मधुमास रंग अब, चलती मस्त बयार।

नवयौवना का अल्हड़पन, सिर पर हुआ सवार।।


ओढ़ प्रकृति ने ली है चादर, पीली सुंदर आज।

होने को तैयार विदा अब, ठंडक सारा काज।।


अमृत स्नान भी करते हैं सब,चहुँदिश है उल्लास।

फैल रहा है सबके मुख पर, सुखद हास परिहास।।


>लिखूँ सदा जितने भी अक्षर,  हों सब तेरे नाम।

चरण आपके सदा रहे नित, मम जीवन सुख धाम।


सतपथ सदा चलूँ में निशि दिन, माँ दो मुझको सीख।

भला कौन देगा मुझको कब, मुफ्त में ऐसे भीख।।


मुझे नहीं कुछ पता अभी तक, करूँ जो पूजा पाठ।

जाने कैसा मैं हूँ पागल,   उमर हो रही साठ।।


आप मुझे इतना सा दो वर , मेरा हो ‌ उद्धार।

हाथ आपका मेरे सिर पर, समझूँ जीवन सार।।


मातु आज मुझको दे दो अब, बस इतना वरदान।

बढ़ता रहे सदा ही नित नव, नूतनता का ज्ञान।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract