गुरू के शरण में
गुरू के शरण में
पहले गुरू मांबाप
दूसरे गुरू ये प्रकृति
तीसरा गुरू हैं ज्ञान के भंडार
चौथे गुरू ये लोगों से भरा संसार
कभी डांट फटकार लगाई
फ़िर कभी गले लगाया
कभी प्यार से मुस्कुरा कर
देख उन्हें मेरा आंख भर आया
गलती होने पर कहते थे
गलती तो सब करते हैं
g>तुने गलती को अपनाया माफ़ी मांगनी सिखाकर मुझे इंसान बनाया गुरू हैं वो देवता जिसे कभी अंतर ना किया गुस्सा होने पर भी सर्वदा उन्होंने आशिर्वाद दिया आप कहीं पर भी रहो मेरे मन ही रहना मेरी उलझन की शोर के बीच मुझे ख़ामोशी से सही राह दिखाते रहना!